
गुरूजी विशेष : महाजनी प्रथा के खिलाफ उलगुलान ने बनाया दिशोम गुरू, अलग राज्य का सपना भी किया साकार, चार दशक तक राजनीति में एकछत्र राज
अग. 4
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उपेंद्र गुप्ता

रांची ( RANCHI) : दिशोम गुरू शिबू सोरेन का सोमवार की सुबह करीब 9 बजे लंबी बिमारी के बाद निधन हो गया. उनके निधन से पूरे राज्य में शोक की लहर फैल गई. गुरूजी के जाने के बाद उनका जो स्थान खाली हुआ है,उसे भर पाना फिलहाल तो संभव नहीं दिखता, भविष्य में भी इनके जैसे संघर्षशील और लड़ाकू व्यक्तित्व शायद ही झारखंड को मिल पाएगा. आदिवासियों के लिए गुरूजी किसी भगवान से तनिक भी कम नहीं थे, वे सर्वमान्य नेता थे, जिन्हें आदिवासी समाज अपना सबसे बड़ा संरक्षक मानता था, तो गैरआदिवासी समाज भी उन्हें उतने ही सम्मान के भाव से देखता था. उनकी कहानी भी जितना दिलचस्प है, उतना ही प्रेरणादायक भी. एक आदिवासी युवक शिवचरण से दिशोम गुरू कैसे बनें इसके पीछे उनका लंबा संघर्ष है.
संथाल आदिवासी परिवार में हुआ जन्म
गुरूजी का जन्म वर्तमान रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नेमरा गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में 11 जनवरी 1944 को हुआ था, उनके पिता सोबरन सोरेन गांधीवादी विचार धारा के किसान थे. बचपन में गुरूजी का नाम शिवचरण मांझी था. प्यार से उन्हें शिवलाल कहकर भी लोग पुकारते थे. गांव की एक घटना ने शिवलाल को ऐसा जुझारू और लड़ाकू आंदोलन कारी बना दिया, जिसकी आज भी मिसाल कायम है.
पिता की हत्या ने बदल दी गुरूजी की जिंदगी





