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दिशोम गुरू को भारत रत्न देने की मांग पकड़ने लगा जोर, केंद्र सरकार से अपील

अग. 7

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रांची डेस्क

रांची  ( RANCHI ) : झारखंड के दिशोम गुरू और आदिवासियों के सर्वमान्य नेता पूर्व सीएम शिबू सोरेन को भारत रत्न देने की मांग अब जोर पकड़ने लगा है. जिस तरह से गुरूजी ने पूरे जीवन काल में लंबा संघर्ष  किया, राज्य और आदिवासियों के विकास के लिए आंदोलन किया, समाज में सुधार के लिए प्रयास किया, एक जुझारू योद्धा के रूप में उनकी पहचान रही है, उसी आधार पर राज्य के लोगों ने उन्हें भारत रत्न देने की मांग शुरू कर दिया है.

झामुमो ने भारत सरकार से की अपील

मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने एक बयान जारी कर भारत सरकार से अपील की है कि वह झारखंड राज्य के निर्माता, सामाजिक न्याय के अप्रतिम योद्धा और दिशोम गुरु के नाम से समूचे आदिवासी समाज में पूज्य शिबू सोरेन जी को भारत रत्न देने पर गंभीरता से विचार करे. श्री पांडेय ने कहा कि गुरुजी का जीवन संघर्षशील, प्रेरणादायी और जन-सरोकारों से ओतप्रोत रहा है.

समाजिक क्रांति के प्रतीक थे गुरूजी

 गुरुजी शिबू सोरेन न केवल एक राजनेता थे, बल्कि वे आदिवासी चेतना के वाहक, शोषित-वंचित वर्ग के सशक्त प्रवक्ता और सामाजिक क्रांति के प्रतीक थे. उन्होंने नशाखोरी और महाजनी प्रथा के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन खड़ा किया, जिससे झारखंड के दूर-दराज़ गांवों में चेतना फैली. शिक्षा के क्षेत्र में भी गुरुजी ने अनेक पहल की, ताकि आदिवासी समाज ज्ञान के माध्यम से सशक्त हो सके.

 जीवन त्याग, संघर्ष और सेवा की मिसाल

श्री पांडेय ने कहा कि झारखंड को अलग राज्य बनाने के आंदोलन से लेकर केंद्र और राज्य सरकारों में मंत्री व मुख्यमंत्री रहते हुए गुरुजी ने सदैव जनहित को प्राथमिकता दी. उनका जीवन त्याग, संघर्ष और सेवा की मिसाल है. ऐसे महापुरुष को भारत रत्न से सम्मानित करना केवल उनके प्रति श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि देश की लोकतांत्रिक और सामाजिक चेतना को भी गौरवान्वित करना होगा. केंद्र सरकार को इस पर अविलंब निर्णय लेना चाहिए.

राजद ने भी भारत रत्न देने की मांग की

प्रदेश राजद प्रवक्ता कैलाश यादव ने कहा कि गुरुजी झारखंड के धरतीपुत्र माटी के लाल थे . जल जंगल जमीन बचाने के लिए जीवंत काल तक संघर्ष त्याग और बलिदान देने वाले योद्धा के तौर पर आवाज उठते रहे.

झारखंड के दबे कुचले गरीब वंचित आदिवासी समाज के हक अधिकार के लिए और साहूकारों के अत्याचार के खिलाफ जंगल के गांव से लेकर लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद तक पहुंचाने में कामयाब रहे.

 

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