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सियासी रिश्ते में मिठास : स्टार भोजपुरी सिंगर पवन सिंह भाजपा में लौटे,उपेंद्र कुशवाहा से लिया आशीर्वाद, क्या है भाजपा की रणनीति  

सित. 30

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 न्यूज डेस्क

पटना ( PATNA ) : बिहार भाजपा और एनडीए दोनों के लिए आज बेहद सुखद खबर सामने आया, जब स्टार भोजपुरी सिंगर पवन सिंह की भाजपा में वापसी हो गई और संभवत दो-तीन में पटना में औपचारिक रूप से भाजपा की फिर से सदस्यता ग्रहण कर लेंगे. इस बड़ी खबर से बड़ी खबर यह थी कि भाजपा में वापस लौटने के तत्काल बाद वे सीधे उपेंद्र कुशवाहा से मिलने उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास पहुंच गए और पैर छू कर आशीर्वाद लिया. उपेंद्र कुशवाहा ने भी दिल खोल कर पवन को बधाई दी. इस मौके पर भाजपा के बिहार प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े तथा पार्टी नेता ऋतुराज सिन्हा भी मौजूद थे.

मीटिंग के बाद तावड़े ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि पवन सिंह भाजपा में हैं और भाजपा में ही रहेंगे.वे एक कार्यकर्ता के रूप में एनडीए को मज़बूत करने का काम करेंगे.

बिहार में सियासी तापमान बढ़ा, विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना

पवन सिंह के भाजपा में वापसी और उपेंद्र कुशवाहा से मिलने के बाद बिहार के राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है. दिल्ली में हुई इस मुलाकात से पटना तक अचानक सियासी तापमान बढ़ गया है. पवन सिंह के आरा या किसी अन्य सीट से भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने की अटकलें भी तेज़ हो गई हैं.


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लोकसभा में उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ लड़े थे चुनाव  

लोकसभा चुनाव के दौरान पवन सिंह भाजपा में शामिल हुए थे और उन्हें पहले आसनसोल से टिकट देने की घोषणा हुई, बाद में भाजपा ने टिकट कैंसिल कर दिया, किसी अन्य सीट से लड़ाना चाहती थी, लेकिन पवन सिंह नहीं माने और काराकाट लोकसभा सीट से निर्दलीय एनडीए प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ उतर गए, नतीजा दोनों हार गए. दोनों की लड़ाई में सीपीआई के राजा राम सिंह चुनाव जीत गए.   


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शाहाबाद क्षेत्र में एनडीए को मिल सकता है फायदा

लोकसभा चुनाव में भोजपुरी सिंगर पवन सिंह की जिद्द के कारण भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था, भाजपा शाहाबाद और दक्षिण बिहार में पूरी तरह साफ हो गई. आरा, बक्सर, काराकाट, सासाराम और औरंगाबाद लोकसभा चुनाव भाजपा प्रत्याशी की हार हुई. दरअसल पवन सिंह के निर्दलीय मैदान में उतरने के कारण शाहाबाद में दोनों की अपनी-अपनी जाति गोलबंद हो गई, काराकाट से पवन सिंह को जिताने के लिए राजपूत जाति के लोग एकजूट हो गए, तो कोइरी जाति के लोग आरा लोकसभा में राजपूत जाति के भाजपा प्रत्याशी और पूर्व मंत्री आरके सिंह के विरोध में खड़े हो गए. राजपूत और कोइरी जाति के इस राजनीतिक गोलबंद का असर बक्सर, औरंगाबाद, सासाराम सीट पर भी पड़ा और भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा.  

भाजपा के शीर्ष नेताओं को दोनों को मिलाया

 बिहार विधानसभा चुनाव में शाहाबाद और दक्षिण बिहार में फिर से वापसी के लिए दोनों का मिलना काफी महत्वपूर्ण है. पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के कड़वाहाट भूल जाने के बाद फिर से इस इलाके में जातीय समीकरण बदल जाएगा और उसका निश्चित रूप से लाभ भाजपा और एनडीए को मिलेगा. इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए भाजपा के शीर्ष नेताओं ने पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच हुई सुलह कराई. और खुद दोनों नेता भी समझ चुके हैं कि आपसी कड़वाहट से कुछ नहीं मिलेगा और एकजूट होने पर बाजी पलट सकते हैं. राजपूत और कोइरी जाति के लोग भी अब समझ चुके होंगे कि जाति गोलबंद होकर अपने ही जाति के नेताओं का नुकसान कराना है. इसलिए पवन सिंह की भाजपा में वापसी और उपेंद्र कुशवाहा से भेंट केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि दोनों नेताओं के बीच सुलह मधुर संबंध का प्रतीक माना जा रहा है.

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