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बंपर वोटिंग SIR का कमाल, नीतीश की वापसी या बदलाव के संकेत, क्यों चकराया सबका माथा,पढ़िए आंकड़ों पर आधारित खबर   

नव. 7

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न्यूज डेस्क

पटना ( PATNA) : बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में 6 नवबंर को 121 विधानसभा सीटों पर हुए मतदान का प्रतिशत 64.66 पहुंचा देखकर पक्ष-विपक्ष दोनों ही ऊहापोह की हालत में हैं, राजनीतिक विश्लेषज्ञों का भी सिर चकरा गया है, सटीक विश्लेषण और भविष्यवाणी करने वाले भी सोच-समझ कर बोल रहे हैं. इस रिकार्ड तोड़ मतदान का राजनीतिक-आका अपने अपने हिसाब से गुणा-गणित बैठाने में लगे हैं.


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चुनाव आयोग के SIR प्रक्रिया से बढ़ा मतदान प्रतिशत

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में 121 सीटों पर रिकॉर्ड 64.66% वोटिंग हुई, जो 2020 और 2024 की तुलना में करीब 9% ज्यादा है. हालांकि, यह बढ़ोतरी चुनाव आयोग की Special Intensive Revision (SIR) प्रक्रिया के बाद मतदाता सूची से 30 लाख नाम हटाए जाने से भी जुड़ी है. इन कटौतियों के बावजूद वास्तविक वोट डालने वालों की संख्या बढ़ी है, जो बताता है कि SIR ने निष्क्रिय वोटरों को हटाकर सक्रिय मतदाताओं की भागीदारी को बढ़ाया.

नए आंकड़े बताते हैं कि मतदाता सूची घटने के बाद भी वोट डालने वालों की वास्तविक संख्या में गिरावट नहीं आई, बल्कि उसमें इज़ाफा हुआ है. आयोग के मुताबिक, इन 121 सीटों पर कुल 3.75 करोड़ मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें से लगभग 2.43 करोड़ लोगों ने वोट डाला. यह आंकड़ा 2024 लोकसभा चुनाव में इन्हीं सीटों पर वोट डालने वाले 2.15 करोड़ मतदाताओं से लगभग 28 लाख ज्यादा है. इसका मतलब यह हुआ कि मतदाता सूची में कटौती के बावजूद वोट डालने वालों की संख्या बढ़ी, जो यह दर्शाता है कि SIR प्रक्रिया ने संभवतः केवल डुप्लिकेट या निष्क्रिय वोटरों को ही हटाया, न कि सक्रिय मतदाताओं को.

साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जहां 2.06 करोड़ लोगों ने मताधिकार का उपयोग किया था. वहीं 2025 को 2.42 करोड़ लोगों ने अपना मतदान किया.


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बिहार की सत्ता पर महिला मतदाता का होगा निर्णायक फैसला

इस बार महिला मतदाताओं की भागीदारी अभूतपूर्व रही. बिहार में 2005 के बाद से महिलाएं नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत रही हैं, साइकिल योजना, आरक्षण और शराबबंदी जैसी योजनाओं ने उन्हें बड़ी संख्या में जोड़ा. हालांकि, 2020 में यह समर्थन कुछ कम हुआ था, लेकिन 2025 में नीतीश सरकार ने 10,000 रुपये की सहायता योजना का दांव चलाया है. वहीं, तेजस्वी यादव ने हर महिला को ₹30,000 देने का वादा कर महिला वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है. कहा जा रहा है कि महिला वोट ही इस बार बिहार की सत्ता का फैसला करेगा.

बंपर मतदान एंटी इंकम्बेंसी की कोई गारंटी नहीं

आजाद भारत के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यही दिखाई देगा कि जब जब और जहां भी जिस चुनाव में मतदान का प्रतिशत ऊंचा गया तो, या तब तब वह वर्तमान सत्ता को सरकार यानी बदलकर, नई सरकार के हवाले सत्ता का सिंहासन किया जाता रहा है. बंपर मतदान एंटी इंकम्बेंसी की गारंटी नहीं वहीं दूसरी ओर एंटी इंकम्बेंसी पर विश्वास न रखने वाला नीतीश कुमार खेमा दावा कर रहा है कि मतदान का प्रतिशत इस कदर का रिकॉर्ड तोड़ ऊंचा जाना (प्रो इंकम्बेंसी) यानी जनता का सत्तासीन नेताओं के ऊपर आंख मूंदकर फिर से भरोसा जताने का प्रबल संदेश है. नीतीश खेमे के ही कुछ उच्च पदस्थ नेताओं में कई हालांकि उस बढ़े हुए मतदान प्रतिशत पर खामोशी भी साधे हुए हैं. यह सोचकर कि इस गुणा गणित पर खुशी या जश्न मनाना कहीं चुनाव के संपूर्ण परिणाम आने वाले दिन जग-हंसाई की वजह न बन जाए. क्योंकि मतदाता के मत का रुझान पक्के तौर पर तभी हार जीत तय करेगा जब चुनाव के हर चरण का कुल मतदान संख्या सामने आ जाए. बंपर मतदान यानी एंटी इंकम्बेंसी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि हमेशा इससे सत्ता परिवर्तन ही होगा या सत्ता परिवर्तन नही होगा. सब कुछ किसी भी चुनाव के अंतिम घोषित परिणाम पर निर्भर करता है.

जनसुराज वोटकटवा या किंगमेकर

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार का वोटिंग पैटर्न स्थानीय मुद्दों पर आधारित होगा. जहां नीतीश की योजनाएं सफल रहीं, वहां NDA को बढ़त मिल सकती है, जबकि बेरोजगारी और पलायन वाले क्षेत्रों में महागठबंधन को लाभ हो सकता है. जनसुराज पार्टी कुछ सीटों पर वोटकटवा और कुछ पर किंगमेकर बन सकती है. अब सबकी नजर 11 नवंबर पर है, जब दूसरे चरण की वोटिंग होगी... और 14 नवंबर को साफ हो जाएगा कि बिहार की जनता ने बदलाव चुना या नीतीश की निरंतरता पर मुहर लगाई.

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