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नवरात्र का पांचवा दिन : मातृत्व का प्रतीक मां स्कंदमाता, जीवन में सफल होना है तो करें मां की आराधना

सित. 26

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न्यूज डेस्क

रांची ( RANCHI) : नवरात्रि के पांचवें दिन यानी पंचमी तिथि पर देवी दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती ह.। स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय की माता हैं और उन्हें मातृत्व का प्रतीक माना जाता है.

स्कंदमाता का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है, स्कंद व माता और इसका अर्थ होता है- स्कंद की माता. स्कंद का अर्थ भगवान कार्तिकेय और माता का अर्थ मां से है, इस प्रकार इनके नाम का अर्थ ही स्कंद की माता है. स्कंदमाता को पद्मासना भी कहा जाता है क्योंकि ये कमल पर विराजमान रहती हैं. मां को सफेद रंग बहुत पसंद है.

 

तारकासुर नामक के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा तब तारकासुर अमर होने का वरदान मांगा लिया. इस पर भगवान ब्रह्मा जी ने कहा कि जन्म लेने वाले हर प्राणी का अंत तय है, मृत्यु अवश्य होती है. ये बात सुनकर तारकासुर ने चालाकी यह वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हो. ऐसा उसने इसलिए कहा क्योंकि उसे लगता था कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे, तो उनके कोई पुत्र भी नहीं होगा. ऐसे में  वह अमर हो जाएगा.

 

 

इसके पश्चात भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया और उनसे एक पुत्र हुआ, जिसका नाम स्कंद अर्थात कार्तिकेय रखा गया. इसके बाद माता पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद को असुर तारकासुर से युद्ध करने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए  स्कंदमाता का रूप धारण किया. प्रशिक्षण लेने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया और सभी को उसके अत्याचारों से मुक्त कर दिया.

 

धार्मिक मान्यता है कि मां स्कंदमाता की विधिवत पूजा करने से भक्त को संतान सुख, ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है। भक्तों का विश्वास है कि इस दिन मां की आराधना करने से घर-परिवार में सुख-शांति का वास होता है और जीवन से कष्ट दूर होते हैं। मां स्कंदमाता की आराधना से विशेष रूप से संतान की प्रगति और जीवन में सफलता के मार्ग प्रशस्त होते हैं।

मां को इन चीजों का लगाएं भोग

मां स्कंदमाता को पूजा के दौरान केले का भोग लगाना बहुत लाभदायक रहता है। उन्हें यह फल अति प्रिय है, जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा। आप मां को खीर का प्रसाद भी अर्पित कर सकते हैं।

 

 

 

 

सित. 26

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