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कृष्ण जन्मोत्सव : कब है जन्माष्टमी और कैसे करें लड्डू गोपाल की पूजा, क्यों खीरा काटने की है परंपरा, जानिए सब कुछ इस खबर में   

अग. 12

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उपेंद्र गुप्ता

 

 रांची ( RANCHI ) : भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण का 2025 में 5252 वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा. उनका जन्म द्वापर युग में मथुरा में हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि आधी रात में हुआ था, उस समय रोहिणी नक्षत्र लगा था. सामान्यत: भगवान श्री कृष्ण की जन्मोत्सव दो मनाने की प्रथा है, लेकिन इस बार काफी लंबे समय के बाद अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र नहीं लग रहा है, इसलिए लोग थोड़े एसमंजस में है कि कृष्ण जन्मोत्सव कब मनाया जाएगा.    

 16 अगस्त को मनाया जाएगा पूरे भारत में कृष्ण जन्मोत्सव

 अगर द्रिक पंचांग की मानें तो 15 अगस्त की रात 11.49 बजे भाद्रपद माह की कृष्णी पक्ष अष्टमी तिथि लग जाएगी और यह 16 अगस्त की रात 09.24 बजे तक रहेगी। वहीं, रोहिणी नक्षत्र का आरं 17 अगस्त की सुबह 04.38 बजे होगा. कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है.

विद्वानों का मानना है कि अगर किसी ऐसी स्थिति बने कि जब अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का मिलन नहीं हो रहा हो, तब उदयातिथि को मान्यता देकर जन्माष्टमी मनाई जा सकती है. ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक, 16 अगस्त 2025 को पूरे देश में जन्माष्टमी मनाई जाएगी.

 

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ऐसे मनाएं भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव

16 अगस्त यानी जन्माष्टमी के दिन व्रत रखें और आधी रात को भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं. रात में 12 बजे श्री कृष्ण का जन्म के समय दूध से स्नान कराएं और फिर भगवान को जल से नहलाएं. अब साफ कपड़े से पोछें और उनके लिए लाए गए विशेष वस्त्र धारण कराएं और फिर उन्हें फूल-माला आदि के पालना पर बिठाएं और झूला झुलाएं। इसके बाद उन्हें माखन, मिश्री,पचांमृत और तुलसीदल का भोग लगाएं.

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भगवान कृष्ण के जन्म पर खीरा काटना शुभ

भगवान कृष्ण के जन्म होने के समय खीरा काटना बेहद शुभ माना जाता है. इसके पीछे मान्यता है कि जन्म के बाद बच्चे को मां के नाभी से अलग किया जाता है. इसलिए प्रतीक के रूप में खीरा के बीच को निकाला जाता है. यह एक तरह से माता देवकी के नाभी से भगवान को अलग करने की रस्म निभाई जाती है. खीरा एक शुद्ध और पवित्र फल माना जाता है, इसलिए भगवान को खीरा को अर्पित किया जाता है और प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है, इसे गर्भवती महिलाओं और संतान प्राप्ति लिए बेहद उत्तम माना गया है.   

 

 

 

 

 

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