
चार माह की निद्रा से जागेंगे भगवान विष्णु, तुलसी विवाह के साथ शुरू हो जाएगा मांगलिक कार्य
नव. 1
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न्यूज डेस्क
रांची ( RANCHI) : देवउठानी एकादशी भारत में पूरे उत्साह के साथ मनाई जाती है. इसे प्रबोधिनी एकादशी, हरिबोधिनी एकादशी, और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. यह पर्व भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है. देवउठानी एकादशी भारत में मनाई जाने वाली 24 एकादशियों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है. यह हमेशा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि (एकादशी) को पड़ती है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में आती है.
भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और समर्पण का दिन
“देवउठानी एकादशी” शब्दों के अर्थ से समझा जा सकता है। “देव” का मतलब है भगवान या देवता, (भगवान विष्णु); “उठानी” का अर्थ है जागरण या उठना; और “एकादशी” का मतलब है ग्यारहवीं तिथि. इस प्रकार, देवउठानी एकादशी वह दिन है जब भगवान विष्णु, जो संसार के पालक के रूप में जाने जाते हैं, चार महीने की लंबी नींद के बाद जागते हैं.
यह दिन भगवान विष्णु के प्रति भक्ति और समर्पण दिखाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. देवउठानी एकादशी के बाद शुभ दिनों की शुरुआत होती है और इस दिन के बाद कई विवाह जैसे मांगलिक कार्य होते हैं.
शांति और सुखमय जीवन के लिए करें एकादशी व्रत
देवउठानी एकादशी सभी हिंदुओं के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण अवसर है. यह वह दिन है जब भगवान विष्णु अपनी लंबी निद्रा से जागते हैं, जिससे वे अपने भक्तों पर आशीर्वाद देने में सक्षम होते हैं. इसे भारत में विवाह के मौसम की शुरुआत माना जाता है, क्योंकि यह सबसे शुभ महीनों की शुरुआत होती है.
दरअसल, देवउठानी एकादशी का महत्व भगवान विष्णु के जागने में निहित है. यह विश्वास किया जाता है कि देवउठानी एकादशी का व्रत और पूजा करने से भक्तों को शांति और सुखमय जीवन के लिए आशीर्वाद मिलता है.
तुलसी और शालिग्राम का विवाह
देवउठानी एकादशी के दिन तुलसी विवाह एक परंपरा के रूप में आयोजित किया जाता है. कई भक्त उसी दिन तुलसी विवाह मनाते हैं और कई लोग अगले दिन यानी द्वादशी तिथि पर तुलसी विवाह मनाते हैं. तुल सी और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह धूमधाम से की जाती है. क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं, जब भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं, तो सबसे पहले तुलसी की पूजा की जाती है.
तुलसी विवाह का अर्थ है तुलसी के माध्यम से भगवान विष्णु की पूजा करना. शास्त्रों में यह कहा गया है कि जिन दम्पत्तियों की बेटियाँ नहीं हैं, उन्हें अपने जीवन में एक बार तुलसी विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त करना चाहिए.
एकादशी पूजा विधि
पूजा से पहले पवित्र जल से स्नान करें. पूजा स्थल को अच्छे से साफ करें और अपनी परंपरा और रीति के अनुसार पूजा सामग्री रखें. शर्करा का रस, सिंघाड़ा (चिनो), पंचामृत और अन्य आवश्यक सामग्री का भोग अर्पित करें. भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर रखें, फिर इन वस्तुओं का अर्पण करें और विष्णु मंत्रों का जाप करें.इसके बाद, व्रत की कथा सुननी जाती है. इसके बाद सभी प्रकार के शुभ कार्यों की शुरुआत होती है. इस दिन के बारे में ऐसा विश्वास है कि जो भी व्यक्ति भगवान के चरणों को छूकर अपनी मनोकामना करता है, उसकी इच्छा अवश्य पूरी होती है.
अगर संभव हो, तो व्रत बिना पानी के रखा जाए.यदि व्यक्ति बीमार है, वृद्ध है या छोटा बच्चा है, तो उन्हें केवल एक बार व्रत रखना चाहिए.इस दिन भगवान विष्णु या अपने इष्ट देवता की पूजा करनी चाहिए.
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का करें जाप
इस दिन तामसिक आहार जैसे प्याज, लहसुन, मांस, शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए. जो व्यक्ति मानसिक परेशानियों से ग्रस्त हैं या जिनका चंद्रमा कमजोर है, उन्हें इस दिन केवल पानी और फल खाकर व्रत रखना चाहिए, जिसे निरजल एकादशी कहा जाता है. ऐसा करने से उन्हें विशेष लाभ होता है.











