
पितृपक्ष : घर में ही पितरों का करें तर्पण, भर देंगे खुशियों से झोली, कैसे पढ़िए खबर में
सित. 8
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उपेंद्र गुप्ता
रांची ( RANCHI) : सनातन धर्म में श्राद्ध का विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है. श्रद्धा शब्द से श्राद्ध बना है, जिसका मतलब है पितरों के प्रति हमारी श्रद्धा भाव. हमारे अंदर प्रवाहित रक्त में हमारे पितरों का ही अंश होता है, जिसके कारण हमअपने पूर्वजों के ऋणी होते हैं और यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाने का विधान शास्त्रों में बताया गया है. सनातन धर्म में आश्विन प्रतिपदा से आश्विन अमावस्या तक पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष शुरू होता है. इस साल 8 सितंबर से शुरू हो चुका है. इस समय पितरों का स्मरण करने और उन्हें तर्पण, पिंडदान तथा श्राद्ध कर्म करने का विशेष काल माना गया है. इस अवधि में पितरों की आत्माएं पृथ्वी लोक पर अपने वंशजों से तर्पण की प्रतीक्षा में आती हैं और संतुष्ट होने पर आशीर्वाद देकर जाती हैं. अतः श्राद्ध केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि कृतज्ञता का पर्व भी है.

पितरों के श्राद्ध से पितृऋण से मिलती है मुक्ति
धार्मिक मान्यता के अनुसार श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं और वंशजों को आयु, आरोग्य, धन-धान्य और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. गरुड़ पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, उसके कुल में सुख-शांति बनी रहती है. पितरों को अन्न और जल अर्पित करने से उनके अपूर्ण इच्छाओं की तृप्ति होती है. मान्यता है कि जब पितर संतुष्ट होते हैं तो वे अपने वंशजों के जीवन से विघ्न-बाधाओं को दूर कर देते हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि माता-पिता और पूर्वजों के ऋण को उतारना हर संतान का कर्तव्य है. श्राद्ध करने से पितृऋण से मुक्ति मिलती है. माना जाता है कि जो लोग पितरों का श्राद्ध नहीं करते, उन्हें जीवन में बाधाओं और कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. श्राद्ध कर्म हमें सिखाता है कि आज हम जो भी हैं उसमें हमारे पितरों के प्रयास और त्याग का परिणाम है. इसलिए श्राद्ध अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और स्मरण का अवसर है.

पिंडदान के लिए गया जी सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल, 7 पीढ़ियों का होता है उद्धार
पितरों के पिंडदान, तर्पण या श्राद्ध के लिए देश के कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों हरिद्वार, बनारस, ऋषिकेष में भी लोग जाते हैं, लेकिन इन सभी में गयाजी को सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल माना जाता है. इसलिए गया जी को पितृ तीर्थ स्थल कहा जाता है. गया में फल्गुन नदी के किनारे विष्णुपद मंदिर में पितरों का पिंडदान, तर्पण,श्राद्ध करने का शास्त्रों में वर्णन किया गया है. गरुड़ पुराण के मुताबिक, गयाजी में होने वाले पिंडदान की शुरुआत भगवान राम ने की थी. बताया जाता है कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने यहां आकर पिता राजा दशरथ को पिंडदान किया था. बताया यह भी गया कि यदि इस स्थान पर पितृ पक्ष में पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्री हरि यहां पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. गयाजी में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसा करने से उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है. इसी महत्व के चलते यहां लाखों लोग हर साल अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं.

अपने घर में भी कर सकते है पितरों का तर्पण
पितरों के श्राद्ध, तर्पण के लिए लाखों लोग गया जी जाते है, लेकिन यदि आपके पास समय का आभाव है तो आप अपने घर में ही पितरों का श्रद्धापूर्व क ये सारी नियमें पूरी कर सकते हैं, पितरों को पानी पिलाने की प्रक्रिया को ही तर्पण कहा जाता है. सुबह उठकर स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करें और घर को गंगाजल से शुद्ध करें. अब तांबे या पीतल के पात्र में जल डालें. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ऊं पितृदेवाय नमः कहते हुए तर्पण करें. पितृ मंत्र का जाप करें जैसे- जं पितृभ्यः स्वधा नमः पितरों से क्षमा प्रार्थना करें. चावल, तिल, घी, शहद, दूध से पिंडदान बनाकर पितरों को अर्पित करें. ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा दें. भोजन का कुछ भाग कौवे, कुत्ते व गाय को अर्पित करें.
इस विधि को भी अपना सकते हैं.
तर्पण करने के लिए एक पीतल या फिर स्टील की परात लें. उस में शुद्ध जल डालें और फिर थोड़े काले तिल और दूध डालें. इस परात को अपने सामने रखें और एक अन्य खाली पात्र भी पास में रखें.
फिर अपने दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी ऊंगली के मध्य में दूर्वा यानी कुशा लेकर अंजलि बना लें. यानी दोनों हाथों को मिलाकर उसमें जल भर लें. इसके बाद अंजलि में भरा हुआ जल दूसरे खाली पात्र में डालें.
जल डालते समय अपने प्रत्येक पितृ के लिए कम से कम तीन बार अंजलि से तर्पण करें. किसी ब्राह्म्ण को बुला कर घर में विधि पूर्वक श्राद्ध करा सकते हैं.











