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रक्षा बंधन विशेष : सावन पूर्णिमा दो दिन, तो कब बांधे राखी, कितनी गांठ बांधे कलाई पर, क्यों मनाते हैं पर्व, जानिए सारे सवालों का जवाब

अग. 3

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उपेंद्र गुप्ता

 

रांची ( RANCHI ) : जैसे ही सावन का पवित्र माह आरंभ होता है तो आस्था, प्रेम और विश्वास एक साथ अपने चरम पर पहुंच जाता है. आस्था के रूप में हर दिन भक्त आराध्य भोले नाथ का पूजा-अर्चना में लीन हो जाते हैं, तो दूसरी तरफ प्रेम और विश्वास के रूप में भाई-बहन को काफी करीब ला देता है. सावन का हर पल भक्ति,खुशी और अनमोल पलों से भरा होता है.

रक्षा बंधन, जिसे राखी भी कहा जाता है, एक प्रिय हिंदू त्योहार है जो भाई-बहन के बीच के बंधन का जश्न मनाता है. हर साल, भारत भर में लाखों परिवार इस परंपरा का सम्मान करने के लिए एक साथ आते हैं, प्यार, विश्वास और सुरक्षा के वादे को मज़बूत करते हैं. यह एक विशेष दिन होता है. 

 

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राखी बांधते समय तीन बार गांठ लगानी चाहिए

संस्कृत में रक्षा बंधन का अर्थ है, सुरक्षा की गारंटी . इसमें एक धागा बांधने की रस्म है, जिसे बहन अपने भाई के कलाई पर बांधती है और भाई इसके बदले अपनी बहन को जीवनभर रक्षा करने का वचन देता है और अपने कर्तव्यों का ध्यान रखते हुए बहनों की खुशियों का विशेष ध्यान रखने का वादा करता है. इसलिए बहन हर साल भाई के कलाई पर राखी बांध कर उसके वचनों और कर्तव्यों की याद दिलाती है. इसलिए राखी बांधते समय भाई के कलाई पर सिर्फ तीन गांठ लगानी चाहिए, जिसका संबंध ब्रह्मा,विष्णु और भगवान शिव से होता है.  

सावन पूर्णिमा दो दिन, तो कब बांधे राखी

सावन पूर्णिमा को ही रक्षा बंधन का पर्व मनाने की परंपरा है. लेकिन भद्रा योग में राखी बांधना अशुभ माना जाता है, इसलिए राखी शुभ मुहूर्त में बांधना भाई-बहन के लिए उचित होता है. इस साल सावन पूर्णिमा दो दिन यानि 8 अगस्त और 9 अगस्त को लग रहा है.  

 पूर्णिमा तिथि 8 अगस्त की दोपहर से शुरू होकर 9 अगस्त की दोपहर तक रहेगी. 08 अगस्त को भद्रा दोपहर 02 बजकर 12 मिनट से 09 अगस्त को देर रात 01 बजकर 52 मिनट तक है. 9 अगस्त को सूर्योदय के समय पूर्णिमा रहेगी, इसलिए अधिकांश हिंदू कैलेंडर और ज्योतिषी 9 अगस्त को ही रक्षा बंधन मनाने की सलाह दे रहे हैं. 9 अगस्त को "शुभ मुहूर्त" नामक पवित्र समय सुबह 5:39 बजे से शुरू होकर दोपहर 1:24 बजे तक रहेगा. 9 अगस्त को सुबह के समय भद्रा का प्रभाव नहीं होगा, इसलिए धार्मिक नियमानुसार 9 अगस्त को ही राखी बांधना सुरक्षित और श्रेष्ठकर रहेगा.

 राखी बांधने के बाद बहन को उपहार जरूर दें

भाई को राखी बांधने के लिए एक पूजा विधि होती है, जिसे हर बहन को जरूर करना चाहिए. फूल,गुलाल से सजी एक थाली में धी या तेल का दीपक जलाएं, साथ ही थाली में रोली,चावल,मिठाई और राखी रखें, फिर उस थाली से भाई के सामने धीरे-धीरे गोलाकार में आरती करें, फिर भाई के माथे पर रोली से तिलक लगाएं, इसके बाद भाई के कलाई पर राखी बांधते हुए भाई के समृद्धि और कल्याण की कामना करें. राखी बांधने के बाद भाई को अपने सामर्थ्य के अनुसार बहन को एक उपहार देते उसकी रक्षा करने का वचन देना चाहिए, यह पल स समय एक आध्यात्मिक माहौल उत्पन्न करता है. यहीं भाई-बहन के बीच सच्चे प्रेम और स्नेह का प्रतीक माना जाता है और दोनों के बीच भाई-बहन के संबंध को मजबूती प्रदान करता है.      

 भाई के साथ भाभी के चूड़े पर राखी बांधने का बढ़ रहा प्रचलन

रक्षा बंधन पर्व में राजस्थानी और मारवाड़ी समाजों में एक विशिष्ट परंपरा प्रचलित है. बहन अपने भाई की पत्नी यानि भाभी के चूड़े पर 'लुम्बा राखी' बाँधती है. इस प्रथा के पीछे यह मान्यता है कि चूँकि पत्नी जीवनसाथी होती है, भाई के साथ भाभी भी बहन की रक्षा और हित सुनिश्चित करने में समान रूप से भागीदारी निभाती है, इसलिए भाभी के बिना यह समारोह अधूरा रहता है. यह प्रथा धीरे-धीरे अन्य भारतीय समुदायों में भी काफी लोकप्रिय हो रही है. 



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 रक्षा बंधन का पर्व कब से मनाया जा रहा है

रक्षा बंधन का पर्व कब से और क्यों मनाया जाता है, इसकी कई कथाएं प्रचलित है. भागवत पुराण और विष्णु पुराण में बताया गया है कि जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को हरा कर तीनों लोक में विजय प्राप्त कर लिया तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से अपने महल में रहने का अनुरोध किया, लेकिन माता लक्ष्मी इसके लिए तैयान नहीं हुई, तब मां लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई मान कर उसके कलाई पर राखी बांधी और अपने लोक जाने की इच्छा जताती है, जिस पर राजा बलि ने मां लक्ष्मी के अनुरोध को नहीं टाल सकें और अपने वचन के अनुसार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को अपने बैकुंठ लोक में जाने देने पर राजी हो जाते है. मान्यता है कि तभी से रक्षा बंधन का त्योहार शुरू हुआ. एक लोक कथा काफी प्रचलित है जब महाभारत काल में भगवान कृष्ण के अंगुली में चोट लग जाती है, तब फौरन द्रौपदी अपनी साड़ी का एक कोना फाड़ कर भगवान कृष्ण के अंगुली में बांध देती है, जिस पर भगवान कृष्ण ने उस समय विपत्ति के समय मदद करने का भरोसा दिया था. द्रौपदी का जब भरी सभा में कौरव चिरहरण कर रहे थे, तब द्रौपदी में उस विपत्ति के समय भगवान कृष्ण का स्मरण किया था और भगवान ने द्रौपदी का लाज बचाया था.

ऐसी ही कई और कथाएं प्रचलित है, जिसके कारण सनातन समाज में बहनों के द्वारा भाई को पवित्र राखी बांधने की परंपरा शुरू हुई .  

 

 

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