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भाजपा-झामुमो राज्य में दो बार एक साथ बना चुके हैं सरकार, गृह मंत्री से मिलें राज्यपाल, तो फिर गरमाई राजनीति, पढ़िए खबर विस्तार से

दिस. 3

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उपेंद्र गुप्ता

 

रांची ( RANCHI) : बिहार चुनाव के बाद अब झारखंड राजनीति का केंद्र बन गया है. दिल्ली से लेकर रांची तक झारखंड में सत्ता के नए समीकरण की खूब सियासी चर्चा हो रही है. सोशल मीडिया हो या अखबार या टीवी चैनल सभी जगह सत्ता परिवर्तन को लेकर खूब खबरें चल रही है. कुछ मीडिया इस सत्ता परिवर्तन की चर्चा में संभवना तलाश रहा है. तो कुछ इसे महज सियासी अटकलबाजी और अफवाह बता रहे हैं. इसके पीछे भी कारण है कि राज्य में सत्ता परिवर्तन को लेकर भाजपा और झामुमो के साथ कांग्रेस नेताओं के बयान सामने आ चुके हैं. दोनों दल के नेता भी सिरे से इस संभावित उलट-फेर की राजनीति को नकार रहे हैं, तो जाहिर है कि लोग दो घड़े में बंटेंगे ही. भाजपा का कहना है कि समुद्र के दो किनारे नहीं मिलते हैं, तो झामुमो का कहना है कि झारखंड झुकेगा नहीं. लेकिन मौजूदा हालात में इस तरह की राजनीतिक बयान देना मजबूरी ही है. सच तो यह है कि खेल अभी पर्दे के पीछे चल रहा है. सीएम हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन का दिल्ली में भाजपा के नेताओं से मिलना और इसी बीच गवर्नर का अचानक दिल्ली जाकर गृह मंत्री अमित शाह से मिलना महज संयोग भी नहीं हो सकता.   

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भाजपा-झामुमो एक साथ झारखंड में एक बार नहीं, दो बार बना चुके हैं सरकार

 अगर आप 2009 विधानसभा चुनाव के बाद से लेकर 2014 तक के राज्य के राजनीतिक कालखंड को याद करें, तो तस्वीरें आइनें की तरह साफ हो जाएगी कि समुद्र के दो किनारे भले ही ना मिलें, झारखंड भी कभी नहीं झुकेगा, यह भी सही है, लेकिन राजनीति में तो सब कुछ संभव है.  

 2009 के झारखंड विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था. इस चुनाव में झामुमो का कांग्रेस से गठबंधन नहीं था. तब बाबूलाल मरांडी भाजपा छोड़ अपनी अलग पार्टी झारखंड विकास मोर्चा बना कर लड़े थे और कांग्रेस से उनका गठबंधन था. भाजपा का आजसू और जदयू के साथ गठबंधन था. झामुमो को 18, भाजपा को 18, कांग्रेस को 14, झारखंड विकास मोर्चा को 11, आजसू को 5, राजद को 5 और जदयू को 2 सीटें मिलीं थी. अन्य छोटे दलों और निर्दलीय मिलाकर 8 विधायक जीते थे. इस परिस्थिति में शिबू सोरेन सरकार बनाने के लिए कांग्रेस से समर्थन मांगा, लेकिन बाबूलाल के विरोध के कारण कांग्रेस पीछे हट गई. फिर भाजपा ने धुर विरोधी शिबू सोरेन को समर्थन देने का फैसला कर लिया. भाजपा के 18, झामुमो के 18, जदयू के 2, आजसू के 5 और 3 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से शिबू सोरेन को मिल गया और राज्य में झामुमो और भाजपा की सरकार बन गई, शिबू सोरेन सीएम बनें और भाजपा के रघुवर दास और आजसू के सुदेश महतो उपमुख्यमंत्री बने.

मनमोहन सिंह सरकार के समर्थन करने से भाजपा हुई नाराज

 सरकार ठीक ही चल रही थी कि एक मुद्दे पर सीएम शिबू सोरेन गलती कर बैठे, केंद्र सरकार में मनमोहन सिंह सरकार को समर्थन करने से भाजपा नाराज हो गई और भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लग गया. फिर कुछ ही दिन में झामुमो और भाजपा नेताओं के बीच सुलह हुआ और दोनों की सरकार बन गई, लेकिन इस बार सरकार में चेहरा पूरी तरह बदल गया था, इस बार भाजपा का मुख्यमंत्री हुआ और झामुमो का डिप्टी सीएम. मतलब अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बनें और हेमंत सोरेन सरकार में डिप्टी सीएम बनें.

 हेमंत सोरेन ने अर्जुन मुंडा सरकार से समर्थन लिया वापस

 अर्जुन मुंडा और हेमंत सोरेन की जोड़ी वाली सरकार जनवरी 2013 तक चली,यहीं पर हेमंत सोरेन अचानक कुछ मुद्दों पर अर्जुन मुंडा की सरकार से समर्थन वापस ले लिया, लेकिन कांग्रेस के बहुमत नहीं मिलने से राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया, कुछ माह कांग्रेस और राजद के समर्थन मिलने पर हेमंत सोरेन राज्य में पहली बार मुख्यमंत्री बनें. यह सरकार 2014 चली लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार देखना पड़ा और भाजपा गठबंधन की सरकार बन गई. 2019 हेमंत सोरेन ने भाजपा को हरा कर फिर से मुख्यमंत्री बनें, 2025 में भारी बहुमत से सरकार बनाई, लेकिन बिहार चुनाव में जिस तरह उनके साथ इंडी गठबंधन ने घोखा दिया. उसकी टीस उनके दिल में जरूर होगी. राज्य में खराब आर्थिक हालात और कोर्ट-कचहरी के मामले को देखते हुए अगर राज्य में नया सत्ता समीकरण बनता है,तो संभव हो सकता है,क्योंकि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं.    

 

 

 

 

 

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